मै खुश्बू हूँ
पुष्प हमारे जीवन दाता
वही हमारे भाग्य विधाता
अंक भरे जीवन भर पालें
मै उडती तितली सी ही हूँ
बड़ी दूर तक जाऊं
कलियाँ तितली भौंरों के संग
खेल-खेल इतराऊँ
मुझसे आकर्षित हो - हो के
लोग खिंचे ही आयें
मात -पिता को मेरे देखे
और ख़ुशी हो जाएं
मांग सकें ना उनसे मुझको
मै तो उनकी जान
सदा रहूंगी जग में प्यारी
खिला रहे गुल-गुलशन अपना
दूर भले ही जाऊं
जब जी चाहे -प्यार उमड़ता
भागी घर आ जाऊं
रंजो गम दुनिया के दिल के
"हर" -खुशियाँ -दे जाऊं
ख़ुशी -ख़ुशी मुस्काते चेहरे
देख -देख अति खुश हो जाऊं
जो निर्मल -मन-प्रेमी मिलता
दिल में मै बस जाऊं
मै खुश्बू हूँ !!
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सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
मेरे ब्लॉग "खुश्बू" से
उद्धृत
७.३५-७.४८ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी २४.४.१२
प्रिय मित्रों आप सब का स्नेह आकांक्षित है इस चिट्ठे पर भी अपना समर्थन और सुझाव बनाये रखें
ReplyDeleteभ्रमर ५
फूल, बगिया, खुशबू, तितली ...
ReplyDeleteइन सब सुमधुर प्रतीकों को लेकर
बहुत ही प्रभावशाली काव्य प्रस्तुत किया है .....
अभिवादन .
"दानिश"
हार्दिक आभार आप का दानिश जी ...अपना स्नेह बनाये रखें
ReplyDeleteभ्रमर ५