माँ बहनों संग घर भर पीना
ऐश भरे जीवन कल जीना
आज कलह झगड़ा फसाद जड़
कुर्की जब्ती दिन में भी डर
रोजगार रोटी शराब छिन
गयी-आबरू दो पैसे बिन
कौन है दोषी मय-मयखाना ?
कोई शराबी लम्पट-महिला ?
निज बिकता जाता गिरता बेंचे समाज कल
कहीं भिखारी-कहीं बीमारी जलता दिल
आओ लें संकल्प दूर हों नशे व्यसन से
भरें जोश मिल के कर लें काज-जतन से
सरस्वती को पूजें लक्ष्मी खुद ही आयें
उन्हें उठायें गिरे पड़े जो आओ हाथ बढ़ाएं
देश समाज हमारी निजता गौरव गाथा -गाये
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.२५ मध्याह्न
जालंधर पी बी
६.०२.२०१४
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