Tuesday 18 February 2014

शराबी

माँ बहनों संग  घर  भर  पीना
ऐश  भरे जीवन कल जीना
आज कलह झगड़ा फसाद जड़
कुर्की जब्ती दिन में भी डर
रोजगार रोटी शराब छिन
गयी-आबरू दो पैसे बिन
कौन है दोषी मय-मयखाना ?
कोई शराबी लम्पट-महिला ?
निज बिकता जाता गिरता बेंचे समाज कल
कहीं भिखारी-कहीं बीमारी जलता दिल
आओ लें संकल्प दूर हों नशे व्यसन से
भरें जोश मिल के कर लें काज-जतन से
सरस्वती  को पूजें लक्ष्मी खुद ही आयें
उन्हें उठायें गिरे पड़े जो आओ हाथ बढ़ाएं
देश समाज हमारी निजता गौरव गाथा -गाये
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.२५ मध्याह्न
जालंधर पी बी
६.०२.२०१४