संगिनी हूं संग चलूंगी
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जब सींचोगे
पलूं बढूंगी
खुश हूंगी मै
तभी खिलूंगी
बांटूंगी
अधरों मुस्कान
मै तेरी पहचान बनकर
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वेदनाएं भी
हरुंगी
जीत निश्चित
मै करूंगी
कीर्ति पताका
मै फहरूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
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अभिलाषाएं
पूर्ण होंगी
राह कंटक
मै चलूंगी
पाप पापी
भी दलूंगी
संगिनी हूं
संग चलूंगी
मै तेरी पहचान बनकर
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ज्योति देने को
जलूंगी
शान्ति हूं मैं
सुख भी दूंगी
मै जिऊंगी
औ मरूंगी
पूर्ण तुझको
मै करूंगी
सृष्टि सी
रचती रहूंगी
सर्वदा ही
मै तेरी पहचान बनकर
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश ,
भारत
👌👌वाह! बहुत ही बेहतरीन 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका, प्रोत्साहन कृपया यूं ही बनाए रखें। राधे राधे।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका, जय श्री राधे
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन,,सादर नमन
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आप का, जय श्री राधे।
Deleteहृदय विजित कर लिया इस गीत ने मेरा।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आप का बन्धु, जय श्री राधे।
Deleteहार्दिक आभार आप का ,रचना को चर्चा मंच पर स्थान मिला खुशी हुई, राधे राधे।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका , राधे राधे
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आप का आदरणीया, जय श्री राधे।
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