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Tuesday, 24 July 2012

बूढा पेड़



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बूढा पेड़
झर-झर झरता
ये पेड़ (महुआ का )
कितना मन-मोहक था
orissa_11_20090326 mahua flowers
रस टपकता था
मिठास ही मिठास
गाँव भर में
‘भीड़’ जुटती
इसके तले
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‘बड़ा’ प्यारा पेड़
‘अपने’ के अलावा
पराये का भी
प्यार पाता था
           प्यार पाता था हरियाता  था
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फूल-फल-तेल
त्यौहार
मनाता था
थम चुका है
अब वो सिल-सिला
बचा बस शिकवा -गिला
फूल-फल ना के बराबर
मन कचोटता है ……
आखिर ऐसा क्यों होता है ??
सूखा जा रहा है
पत्ते शाखाएं हरी हैं
‘कुछ’ कुल्हाड़िया थामे
जमा लोग हंसते-हंसाते
वही – ‘अपने’- ‘पराये’
काँपता है ख़ुशी भी
ऊर्जा देगा अभी भी
‘बीज’ कुछ जड़ें पकड़ लिए हैं
‘पेड़’ बनेंगे कल
फिर ‘मुझ’ सा
‘दर्द’ समझेंगे !
आँखें बंद कर
धरती माँ को गले लगाये
झर-झर नीर बहाए
चूमने लगा !!
( सभी फोटो गूगल नेट से साभार लिया गया )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल ‘भ्रमर’५
कुल्लू यच पी २५.६.१२
८-८.३३ पूर्वाह्न

Sunday, 15 July 2012

कोख को बचाने को भाग रही औरतें


कोख को बचाने को भाग रही औरतें 
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ये कैसा अत्याचार है 
'कोख' पे प्रहार है 
कोख को बचाने को 
भाग रही औरतें 
दानवों का राज या 
पूतना का ठाठ  है 
कंस राज आ गया क्या ?
फूटे अपने भाग है ..
रो रही औरतें 
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उत्तर , मध्य , बिहार  से 
'जींद' हरियाणा चलीं 
दर्द से कराह रोयीं 
आज धरती है हिली 
भ्रूण हत्या 'क़त्ल' है 
'इन्साफ' मांगें औरतें ....
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जाग जाओ औरतें हे !
गाँव क़स्बा है बहुत 
'क्लेश' ना सहना बहन हे 
मिल हरा दो तुम दनुज 
कालिका चंडी बनीं 
फुंफकारती अब  औरतें ...
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कृष्ण , युधिष्ठिर अरे हे !
हम सभी हैं- ना -मरे ??
मौन रह बलि ना बनो रे !
शब्दों को अपने प्राण दो 
बेटियों को जन जननि हे !
संसार को संवार दो 
तब खिलें ये औरतें 
कोख को बचाने जो 
भाग रहीं औरतें 
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'  
१४.७.२०१२
८-८.३८ मध्याह्न 
कुल्लू यच पी 

Wednesday, 23 May 2012

मै खुश्बू हूँ मगन रहूँ मै

आज  आप  सब के आशीष से  हमें दोहरी ख़ुशी नसीब हुयी एक  तो जन्म दिन पर आप सब का आशीष और भरपूर प्यार और दूसरी तरफ आज यू पी बी एड का परीक्षा फल घोषित हुआ जिसमे मै खुश्बू १७५५ वी रैंक हासिल कर सकी जितनी आशा थी नहीं कर पायी लेकिन घर परिवार आप सब का प्यार यों ही मिलता रहेगा तो इस समाज के लिए कुछ न कुछ रचनात्मक करूंगी ..
आप सब का बहुत बहुत आभार ...बहुत आभारी हूँ मै अपने गुरुओं का , माँ पिता भाई बहन और आप सब का भी .....अब मंजिलों पर कदम बढ़ चले हैं




....हरी ओउम 
खुश्बू
पुत्री  आप सब के  "भ्रमर"  जी 






मै खुश्बू हूँ मगन रहूँ मै
महकूँ मै महकाती जाऊं 
तितली सी उडती जाती मै 
बड़ी दूर तक  देखो तुम्हे छकाये 
मलयानिल संग घूम फिरूं मै 
उड़ उड़ आती अपना पर फैलाये 
मै खुश्बू हूँ........... मगन रहूँ मै
महकूँ मै महकाती जाऊं 
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सुन्दर-सुन्दर पुष्प हमारे 
जननी-जनक हैं न्यारे 
                                              (ये है छोटी बहना कविता -कविता ब्लॉग वाली )


                                                (ये है नटखट मेरा भाई सत्यम -बाल झरोखा सत्यम की दुनिया वाला )

भगिनी -भाई बड़े दुलारे 
कोमल आँख के तारे 
सभी ख़ुशी हैं उनको देखे
खिंचे चले ही आते 
सुन्दर जब परिवेश हमारा 
बगिया हरी भरी हो
प्रेम पुष्प जब खिलें ह्रदय तो
खुश्बू मन भर ही जाती 
मै खुश्बू हूँ मगन रहूँ मै
महकूँ मै - महकाती जाऊं ….
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आनंदित जब मन हों  अपने 
दुनिया अच्छी लगती 
गुल-गुलशन अपना खिल जाए 
बात ये बिलकुल सच्ची 
गले मिलें सौहार्द्र भरा हो 
हर मन हर को प्यार भरा हो 
सभी कृत्य अपने हों अच्छे 
बिना चाह के -जैसे बच्चे 
मगन रहूँ मै ... मै खुश्बू हूँ 
मै खुश्बू हूँ मगन रहूँ मै
महकूँ मै - महकाती जाऊं ….

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मै खुश्बू हूँ सदा सुवासित 
अन्तरंग तेरा महकाऊँ
रोम -रोम पुलकित कर तेरा 
जोश -होश सारा दे जाऊं 
अधरों पर मुस्कान खिलाती 
खुशियों की बरसात कराती 
मै खुश्बू हूँ ....
मै खुश्बू हूँ मगन रहूँ मै
महकूँ मै - महकाती जाऊं ….

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मेरे जन्म-दिवस पर आना 
खुश्बू मन भर -भर ले जाना 
अपने आशीर्वचन सुनाना 
मै जीवंत रहूँ इस उपवन 
सांस में तेरी सदा -सदा -'वन '
गाँव -शहर या गिरि कानन  सब 
दिल में तेरे बसी चलूँ मै 
उन्नति पथ पर सदा उडाऊं 
तितली सा मै रंग -बिरंगी 
सपने तेरे सच कर जाऊं 
इस घर उस घर जहां भी जाऊं 
महकूँ मै महकाती जाऊं 
मै खुश्बू हूँ मगन रहूँ मै
महकूँ मै - महकाती जाऊं ….
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
२४.५.२०१२ कुल्लू यच पी 
७-७.२६ पूर्वाह्न 

Thursday, 26 April 2012

हैप्पी बर्थ डे टू “सत्यम “



हैप्पी बर्थ डे टू 
सत्यम 
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मेरे प्यारे नन्हे मुन्नों 
मित्र हमारे दिल हो 
मात - पिता के बहुत दुलारे 
जग के तुम दीपक हो !
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आओ अपने नन्हे कर से 
सुन्दर प्यारा जहाँ बनायें 
सूरज चंदा तारों से हम 
झिलमिल -झिलमिल इसे सजाएं !
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प्रेम की बहती अमृत धारा 
कमल गुलाब खिले चेहरे हों 


मंद मंद मुस्कान विखेरे 
हम नूर नैन के दिलों बसे हों !
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फूल खिले हों चिड़ियाँ गायें 

नाच मोर हर दिन सावन हो 

ख़ुशी रहे "तुलसी" घर आंगन 
ज्ञान का दीपक ज्योति जगी हो 
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होली दीवाली से हर दिन 
झूमें हम - मन - मिला रहे 
गुडिया गुड्डे और घरौंदे 

अपनी दुनिया सजी रहे !
  
देश के वीर सपूत बनें हम 
भारत - माँ - के लाल बनें 
शावक से जब सिंह बनें हम 
गरजें अरि के काल बनें !

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सभी बड़े- छोटे- सब मिल के 
ह्रदय लगा  - दे - दें आशीष 
सदा सहेजे --  मै रखूँगा 
नमन करूँ - तुम गुरु हो- ईश !
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कल है मेरा जन्म-दिवस- 'प्रिय'
केक काटने आ जाना 

स्नेह लुटा बबलू पप्पू बन 
लड्डू -टाफी - खा जाना 

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गुब्बारे- संग -फूल खिलेंगे
खुश्बू  होगी- कविता होगी 
भ्रमर रहेंगे मधुर गीत में 
काव्य गोष्ठी अद्भुत होगी 
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आपका स्नेहाकांक्षी 'सत्यम"
द्वारा भ्रमर-५- २६.४.२०१२ 
प्रतापगढ़ उ.प्र. 

Tuesday, 24 April 2012

मै खुश्बू हूँ


मै खुश्बू हूँ
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पुष्प हमारे जीवन दाता
वही हमारे भाग्य विधाता
अंक भरे जीवन भर पालें
मधु -पराग से ज्यादा मानें

मै  उडती तितली सी ही हूँ
बड़ी दूर तक जाऊं
कलियाँ तितली भौंरों के संग
खेल-खेल इतराऊँ
मुझसे आकर्षित हो - हो के
लोग खिंचे ही आयें
मात -पिता को मेरे देखे
और ख़ुशी हो जाएं
मांग सकें ना उनसे मुझको
मै तो उनकी जान
सदा रहूंगी जग में प्यारी
बन उनकी पहचान



खिला रहे गुल-गुलशन अपना
दूर भले ही जाऊं
जब जी चाहे -प्यार उमड़ता
भागी घर आ जाऊं
रंजो गम दुनिया के दिल के
"हर"  -खुशियाँ -दे जाऊं
ख़ुशी -ख़ुशी मुस्काते चेहरे
देख -देख अति खुश हो जाऊं
जो निर्मल -मन-प्रेमी मिलता
दिल में मै बस जाऊं
मै खुश्बू हूँ !!
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सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
मेरे ब्लॉग "खुश्बू" से उद्धृत
७.३५-७.४८ पूर्वाह्न
                            कुल्लू यच पी २४.४.१२

Sunday, 22 April 2012

देवी का प्रतिरूप है बिटिया

फूल सी रहती सदा खिली
सब की चाँद खिलौना बिटिया
मुस्काती ही सदा मिली
देवी का प्रतिरूप है बिटिया
रचती जग को सदा रही 
आँखों का तारा है बिटिया
रोशन जग को करती
लक्ष्मी सरस्वती है बिटिया
मीठी वाणी से गृह भरती
ये पराग है मधु है बिटिया
खुश्बू तन मन भरती
माँ पापा की प्यारी बिटिया
दिल में सदा ही बसती !
भ्रमर५
६.२५-६.३३ मध्याह्न
कुल्लू यच पी
२२.०४.२०१२